000 | 04074nam a22002297a 4500 | ||
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005 | 20230124161728.0 | ||
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020 | _a9788126714407 | ||
040 | _cAL | ||
041 | _ahin | ||
082 |
_223 _aH891.1 _bBISA |
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100 |
_aAbdul Bismillah: अब्दुल बिस्मिल्लाह _969746 |
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245 | _aAtithi devo bhav: अतिथि देवो भव | ||
260 |
_aNayi Dilli _bRajkamal Prakashan _c2019 |
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300 |
_a147p. _bHB _c18x12cm. |
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365 |
_2Hindi _a1831 _b336.00 _c₹ _d395.00 _e15% _f11-12-2022 |
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520 | _aबहुचर्चित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का रचना-कर्म आज के ज्वलंत सामाजिक सवालों से जुड़ा हुआ है और ‘अतिथि देवो भव’ में शामिल कहानियाँ उनकी इस रचनात्मक प्रतिबद्धता को और अधिक गहरा करती हैं । कहानियों की इस दुनिया में प्रवेश करते हुए हम भारतीय समाज के विभिन्न तबकों, संस्कारों और परंपराओं से जुड़े कुछ ऐसे चरित्रों से परिचित होते हैं, जिन्हें व्यक्तियों के बजाय सहज ही मानव-मूल्यों की संज्ञा दी जा सकती है। ऐसे चरित्रों में ‘अलिया धोबी और पाव-भर गोश्त’ का अलिया, ‘पुण्यभोज’ का खुदाबकस, ‘खाल खींचनेवाले’ का भुनेसर, ‘नर-लीला’ की कमली, ‘सुलह’ का महादेव, ‘यह कोई अन्त नहीं’ का सरवर और ‘दूसरा सदमा’ के गुलामू चचा विशेष उल्लेखनीय हैं । इन कथा-चरित्रों की शक्लें और कार्य-व्यवहार भले ही अनेक हों, लेकिन अपने इर्द-गिर्द क्रियाशील अमानवीय तंत्र के विरुद्ध उनका गुस्सा और संघर्ष एक है। वर्तमान व्यवस्था के मानव-विरोधी स्वरूप को वे जिस प्रकार महसूस करते हैं और पहचानते हैं, वह न केवल उन्हें, बल्कि इन कहानियों को भी अविस्मरणीय बना देता है। इनके अलावा कुछ कहानियाँ ऐसे चरित्रों को भी सामने लाती हैं, जो पोर-पोर लंपटता से भरे हैं और आधुनिक जीवन-स्थितियों से परिचालित मानव-स्वभाव के संदर्भ में कई स्तरों पर विदूप पैदा करते हैं । वस्तुत: अपने वर्तमान से सीधे साक्षात्कार के लिए भी इन कहानियों को उसी सहजता से ग्रहण किया जा सकता है, जिस सहजता से ये लिखी गई हैं | ||
650 |
_aHindi Fiction: हिंदी कहानी _969743 |
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650 |
_aHindi Literature: हिंदी साहित्य _969744 |
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700 |
_aBISMILLAH (Abdul): बिस्मिल्लाह (अब्दुल) _969745 |
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942 |
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999 |
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