TY - BOOK AU - Jean Dreze:जीन द्रेज़ and others AU - DREZE (JEAN): द्रेज़ (जीन) AU - SEN (Amartya): सेन (अमर्त्य) AU - KUMAR (Ashok): कुमार (अशोक) Tr TI - Bharath aur uske virodhabhas: भारत और उसके विरोधाभास SN - 9789387462229 U1 - H891.4 23 PY - 2022/// CY - Nayi Dilli PB - Rajkamal Prakashan KW - Hindi Prose: हिंदी गध्य KW - Vraddhi aur Vikas ka Ekikaran: वृद्धि और विकास का एकीकरण KW - Shiksha Ka Kendriya Mahathv: शिक्षा का केंद्रीय महत्त्व N2 - नब्बे के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिहाज़ से अच्छी प्रगति की है। उपनिवेशवादी शासन तले जो देश सदियों तक एक निम्न आय अर्थव्यवस्था के रूप में गतिरोध का शिकार बना रहा और आज़ादी के बाद भी कई दशकों तक बेहद धीमी रफ्तार से आगे बढ़ा, उसके लिए यह निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन ऊँची और टिकाऊ वृद्धि दर को हासिल करने में सफलता अन्तत: इसी बात से आँकी जाएगी कि इस आर्थिक वृद्धि का लोगों के जीवन तथा उनकी स्वाधीनताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है। भारत आर्थिक वृद्धि दर की सीढ़ियाँ तेज़ी से तो चढ़ता गया है लेकिन जीवन-स्तर के सामाजिक संकेतकों के पैमाने पर वह पिछड़ गया है—यहाँ तक कि उन देशों के मुकाबले भी जिनसे वह आर्थिक वृद्धि के मामले में आगे बढ़ा है। दुनिया में आर्थिक वृद्धि के इतिहास में ऐसे कुछ ही उदाहरण मिलते हैं कि कोई देश इतने लम्बे समय तक तेज़ आर्थिक वृद्धि करता रहा हो और मानव विकास के मामले में उसकी उपलब्धियाँ इतनी सीमित रही हों। इसे देखते हुए भारत में आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति के बीच जो सम्बन्ध है उसका गहरा विश्लेषण लम्बे अरसे से अपेक्षित है। यह पुस्तक बताती है कि इन पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में समझदारी का प्रभावी उपयोग किस तरह किया जा सकता है। जीवन-स्तर में सुधार तथा उनकी बेहतरी की दिशा में प्रगति और अन्तत: आर्थिक वृद्धि भी इसी पर निर्भर है। • 'शिष्ट और नियंत्रित... उत्कृष्ट... नवीन।’ —रामचन्द्र गुहा, फाइनेंशियल टाइम्स • 'बेहतरीन... दुनिया के दो सबसे अनुभवी और बौद्धिक प्रत्यक्षदर्शियों की कलम से।’ —विलियम डेलरिम्पल, न्यू स्टेट्समैन • 'प्रोफेसर अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज़ अपनी किताब से आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं... भारत के लिए सबसे बड़ी चिन्ता की बात आज के समाज में बढ़ती हुई असमानताएँ होनी चाहिए।’ —रघुवीर श्रीनिवासन, द हिन्दू • 'कई मायनों में एक सकारात्मक किताब, जिसे ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए।’ —इप्शिता मित्रा, द टाइम्स ऑफ इंडिया • 'दार्शनिक गहराई, अर्थव्यवस्था के तर्क, अनुभव की पूर्णता और नीतिगत औचित्य का उल्लेखनीय संयोजन... जनता के बौद्धिक प्रतिनिधि के रूप में लिखते हुए, वे उत्तेजित मस्तिष्क, दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रेरित कार्यों की तलाश करते हैं। हालाँकि इससे उनके तर्कों की गम्भीरता पर कोई फर्क नहीं पड़ता।’ —आशुतोष वार्ष्णेय, इंडियन एक्सप्रेस ER -